फलों के राजा ‘‘आम‘‘ की खेती से सम्पन्न होंगे किसान


सक्ती – फलों के राजा आम की खेती से किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। जिले को 55 हेक्टेयर भूमि में आम रोपण हेतु लक्ष्य प्राप्त हुआ है। इसके लिए जिला उद्यानिकी विभाग के शासकीय उद्यान रोपणी डोड़की (सक्ती), कचंदा (जैजैपुर), भूतहा (मालखरौदा) व चुरतेली (डभरा) में राज्य पोषित योजना के तहत् 15 हज़ार पौधा तैयार किया गया है, पौधा को तैयार करने में 15 से 20 रूपये खर्च आता है। योजना के तहत् कलमी आम जैसे-दशहरी, चौसा, लंगड़ा, आम्रपाली एवं अन्य प्रजाति के पौधों को किसानों को निःशुल्क प्रदान किया जायेगा। देशी किस्म की तुलना में आम के इन किस्मों को रोपण के तीन से पांच साल के भीतर फल आना प्रारंभ हो जाता है, इन किस्मों को लगाने से किसानों की आर्थिक स्थिति समृद्धि होगी। वर्तमान समय में प्राकृतिक रूप से विकसित अमरइयां गांव में धीरे-धीरे कम होने लगे हैं, कारण यह है कि यहाँ पूराने पौधे नष्ट हो चुके हैं, इन नष्ट पौधों की जगह फिर से नये पौधे लगाने की कवायद नहीं किया जाता है। जिले के तमाम अमराइयों में ज्यादातर छोटे-छोटे फल वाले बड़े झाड़ के बीजू आम पौधे पाए जाते हैं इस कारण से भी किसानों का ध्यान इसकी संरक्षण की ओर नहीं जाता। किसानों को आम की व्यवसायिक खेती से जोड़ने और अमराइयां विकसित करने के लिए राज्य पोषित योजना से शासन ने राशि स्वीकृत की है। प्रारंभिक तौर पर जिले के शासकीय रोपणी डोड़की (सक्ती), कचंदा (जैजैपुर), भूतहा (मालखरौदा) व चुरतेली (डभरा) से किसानों को आम पौध प्रदाय किया जायेगा। पौधा पाने के लिए उन्हें समूह बनाकर या व्यक्तिगत आवेदन करना होगा। न्यूनतम 1 हेक्टेयर एवं अधिकतम 2 हेक्टेयर में रोपाई के लिए आवेदन कर सकते हैं। एक हेक्टेयर भूमि के एवज में 100 पौधे प्रदान किए जाएंगे। किसानों को इसके लिए अपनी जमीन का दस्तावेज देना होगा। जुलाई माह में इन पौधों के किसानों को प्रदाय किया जायेगा। खास बात यह है कि पौधों में तीन साल के बाद फल आना शुरू हो जाएगा, पांच साल के भीतर पूर्ण रूप से विकसित होने के बाद प्रत्येक पेड़ में अधिकतम 200 किलोग्राम फल तैयार होगा व पौध की उम्र बढ़ने के साथ-साथ फल की पैदावार में वृद्धि होगी। स्थानीय बाजार में इन फलों की खास मांग है। फसल तैयार होने पर किसानों में आर्थिक समृद्धि आएगी। यहाँ बताना होगा कि आम की खेती के साथ किसान अंतर्वर्तीय खेती भी कर सकेंगे। आम के दो पेड़ के बीच में खाली जगह में अदरक व हल्दी के अलावा सब्जियों की खेती कर सकेंगे। अंतर्वर्तीय खेती के लिए विभाग की तरफ से प्रति हेक्टेयर खाद बीज के लिए 30 हज़ार रूपयें अनुदान राशि दी जाएगी। खास बात यह है कि धान के लिए हर साल बुवाई से लेकर कटाई के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। वहीं आम को एक बार रोपण करनें के बाद वर्षों के लिए आमदनी की राह खुल जाती है। अमराई विस्तार से न केवल पर्यावरण संरक्षित रहेगा बल्कि मिट्टी का कटाव भी रूकेगा।
प्रति वर्ष दो लाख क्विंटल आम की खपत ग्रीष्म ऋतु में आम की खासी मांग होती है। इसके थोक कारोबार से जुड़े विक्रेताओं का कहना है कि जिले में प्रतिवर्ष दो लाख क्विंटल आम की खपत होती है। इनमें आचार डालने वाले 0.5 लाख क्विंटल छोटे बीजू आम है। शेष 1.5 लाख क्विंटल चौसा, लंगड़ा, आग्रपाली आदि की होती है। ये आम उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से आते है। स्थानीय स्तर पर उत्पादन नहीं करने की वजह से किसानों को इसका लाभ नहीं मिलता है। आम के इन पौधों को तैयार करने के लिए ग्राफ्टिंग (कलम) करने की विधि उद्यान विभाग में अपनाई जाती है। पौध तैयार करने के लिए देशी पौध के गुठली से पौध तैयार किया जाता है तथा साल भर के बाद पौधे के तने को कलम कर उसमें उन्नत प्रजाति जैसे-लंगड़ा, दशहरी, बॉम्बेग्रीन की शाखा को जोड़ा जाता है। ये उन्नतशील किस्म नर्सरियों में मातृवृक्ष के रूप में तैयार किये जाते है। तैयार उन्नतशील पौध को ही कलमी पौध कहा जाता है। ‘‘राज्य पोषित योजना के तहत् किसानों को आम की खेती से जोड़ी जायेगी। हमारे जिले में 55 हेक्टेयर भूमि में आम पौध रोपित करने हेतु 15 हज़ार कलमी पौधे तैयार किए गए हैं। आम के इन कलमी पौधों में तीन से पांच वर्ष में फलन शुरू हो जाता है। जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।‘‘पौध संरक्षण के लिए अन्य सब्सिडी की सुविधा हैं। आम के पौध की देखभाल की जिम्मेदारी स्वयं किसान की होगी। तीन वर्ष तक पौध का संरक्षण विभाग करेगा। पौध नष्ट होने पर पौधों की भरपाई की जाएगी। समूह में खेती करने पर फेंसिंग एवं बोरवेल की सुविधा दी जायेगी। फेंसिंग हेतु 1 हेक्टेयर पर जाली तार एवं सीमेंट पोल हेतु 54,485 रूपये का अनुदान तथा बोरवेल हेतु सामान्य वर्ग को 25,000, अन्य पिछड़ा वर्ग को 35,000 व अनुसुचित जाति/अनुसुचित जनजाति को 43,000 रूपये अनुदान का प्रावधान हैं।योजना का लाभ लेने के लिए कृषक को स्वयं अथवा विभागीय अधिकारी / कर्मचारियों के सहयोग से हार्टिकल्चर बेनेफिसरी ट्रैकिंग सिस्टम पोर्टल https;//cghorticulture.gov.in पर जाकर लॉगिन करके ऑनलाईन आवेदन करना होगा तथा योजना ‘पहले आओ पहले पाओ‘ के आधार पर हितग्राहियों को प्राथमिकता दी जायेगी।