सक्ती

शान से होती है सक्ती की पहचान

शान से होती है सक्ती की पहचान kshititech

सक्ती ‌। एक लंबे संघर्ष के बाद सक्ती जिला बन गया है सक्ती को सजाने संवारने आगे ले जाने की जिम्मेदारी हम सब की बनती है अब सक्ती की पहचान आन बान शान से होती है और हो भी क्यों ना ..आइए हम आपको सक्ती के बारे में कुछ रोचक जानकारी देते हैं आपको बता दें सबसे पहले आपका यह जानना जरूरी है की सक्ती का नाम सक्ती कैसे रखा गया आपको बता दें ब्रिटिश शासन काल में संबलपुर स्टेट हुआ करता था संबलपुर स्टेट के अंतर्गत सक्ती आता था ,यहां दो भाई रहते थे जिनमें एक का नाम हरि और दूसरे का नाम गुजर था ,दोनों भाई संबलपुर स्टेट में अपनी सेवाएं देते थे प्रतिदिन प्रातः काल भोर में 4:00 बजे उठकर दैनिक दिनचर्या के बाद यहां से लगभग 18 किलोमीटर दमोहधारा में स्नान के बाद वहां से तुर्री धाम आते थे वहां भगवान शंकर की पूजा अर्चना करने के पश्चात संबलपुर स्टेट में अपनी सेवाएं देते थे एवं सूर्यास्त के पूर्व अपनी सेवाएं देने के पश्चात वापस सक्ती आ जाते थे, बताते हैं कि इनको पंछी मंत्र की पूरी जानकारी थी ,इसी के सहारे ये संबलपुर प्रतिदिन आना-जाना करते थे इनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर संबलपुर के राजा ने इनको देव पुरुष की उपाधि दी ,राजा ने इनको एक चुंगी देते हुए कहा कि आप इस चुंगी को जलाकर जितने गांव में घूमेंगे उतना आपका रियासत कहलाएगा बताते हैं हरी और गुजर जब चुंगी जलाकर घूमे तो लगभग 146 गांव का चक्कर उन्हें लगाया इनकी सक्ती के प्रताप के कारण नया रियासत बना और तब से इसका नाम सक्ती पड़ गया , ऐसा बताया जाता है। बताते इनके पास बांस से बनी हुई एक तलवार थी जिसको खाड़ा कहा जाता था, जिससे ये शिकार करते थे अपनी अद्भुत सक्ती के कारण इनकी ख्याति चारों तरफ फैलने लगी ,हरि गुजर के इन्हीं सब अद्भुत शक्ति ताकत के कारण सक्ती का नाम सक्ती पड़ा ऐसा बताया जाता है । हरि गुजर के वंशज राजा लीलाधर हुए और राजा लीलाधर के वंशज राजा जीवेंद्र बहादुर हुए और जीवेंद्र बहादुर जिनकी दो संताने हुई राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह और पुष्पेंद्र बहादुर सिंह , वही राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह का अधिकतर समय वर्तमान में महल में ही व्यतीत होता है जबकि पुष्पेंद्र बहादुर सिंह नहीं रहे । आज भी सफेद महल एवं पिला महल को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। पीला महल में तो तस्वीरों का विशाल संग्रह है राजा महाराजाओं की कई पुरानी यादें तस्वीर में है, जो समय को बयां करती है ।

धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है सक्ती

सक्ती शहर तथा आसपास तीर्थ स्थल होने के कारण सक्ती धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है यहां वार्ड नंबर 2 में अखंड राम नाम सप्ताह का आयोजन विगत 90 साल से भी अधिक वर्षों से प्रतिवर्ष निरंतर होते आया है, राम नाम सप्ताह के बारे में आपको बता दें लगाता दिन रात सुबह शाम बिना रुके राम नाम का उच्चारण एवं भजन कीर्तन किया जाता है साथ ही आयोजन के अंतिम दिन हवन पूजा पाठ एवं भव्य भंडारा का आयोजन किया जाता है जिसे ख्याति दूर-दूर तक फैली है इसी प्रकार शहर के मध्य नवधा चौक में भी कई वर्षों से प्रतिवर्ष लगातार 9 दिन तक दिन रात दिन सुबह शाम रामायण का पाठ होता है अंतिम दिन पूजा पाठ हवन के पश्चात भंडारे का आयोजन किया जाता है जिसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली है दूर-दूर से इस आयोजन में शामिल होने भजन मंडली आती है ।इसी प्रकार विरासत काल में मां महामाई दाई विराजमान है जिसमें दोनों नवरात्रि धूमधाम से मनाई जाती है दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना ज्योति प्रज्वलित करवाते हैं सच्चे मन से मांगी गई मनोकामना पूरी होती है भंडारे का भी आयोजन होता है । जिसकी ख्याती भी दूर दर तक फैली है , शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर तीर्थ स्थान तुर्री धाम में शिवलिंग के ऊपर निरंतर जलधारा गिरती है जल कहां से आता है आज तक कोई पता नहीं लगा पाया है प्रतिवर्ष सावन के महीने में मेला लगता है दूर-दूर से भोले बाबा को कावड़ जल से अभिषेक किया जाता है तुर्री धाम की महिमा दूर-दूर तक फैली है बताते हैं यहां का जल कई सालों तक खराब नहीं होता है।इस प्रकार शक्ति से लगभग 18 किलोमीटर दमोहधारा तीर्थ स्थान है यहां ऋषभदेव का मंदिर भी है जो पहाड़ियों के बीच में बसा है यहां की मनोरम छटा देखते ही बनती है यहां पर पर्यटन को लेकर अपार संभावना है जिसमें जिले की एक अलग पहचान बन सकती हैl

कांसा कोसे एवं रोताही बाजार के लिए प्रसिद्ध

सक्ती शहर कांसा ,कोसा के लिए भी प्रसिद्ध है सक्ती नगर में वार्ड नंबर 2 कसेर पारा के नाम से जाना जाता है यहां निवासरत कसेर संप्रदाय द्वारा अपने हाथों से कड़ी मेहनत से विभिन्न प्रकार के बर्तन डिजाइनिंग करते हैं जिसमें कांसे की थाली, लोटा ,मलिया ,प्लेट सहित अन्य बर्तन है ,इसी प्रकार पीतल के भी घघरा ,थाली ,हवला, गुंड आदि बर्तन बनाए जाते हैं जो काफी मजबूत के होते हैं जिसका निर्यात कई राज्यों में किया जाता है, यहां पर एलमुनियम बर्तन की फैक्ट्री भी है जिसमें एलमुनियम के विभिन्न प्रकार के बर्तन बनाए जाते हैं साथ ही यहां पर चपड़ा (लाख) कारखाना भी है, जिसक निर्यात भारत के कई राज्यों सहित देश विदेश में भी किया जाता है । इसी प्रकार देवांगन समाज द्वारा हैंडलूम पावरलूम से भी कोसा कपड़ा से साड़ी सहित अन्य कई प्रकार के वस्त्र बनाए जाते हैं जिसे दूर दूर तक भेजा जाता है, जिस की बनावट काफी मजबूत होती है इसी प्रकार सक्ती मे रोताही बाजार भी काफी प्रसिद्ध है रोताही बाजार के अवसर पर मीना बाजार के साथ-साथ मनोरंजन के अन्य साधन भी आते हैं , रोताही बाजार के अवसर पर नगर पालिका द्वारा रावत नाचा महोत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें यदुवंशी भाई दूर-दूर से आकर अपनी बेहतर कला का प्रदर्शन करते हैं जिसकी ख्याति भी दूर दूर तक फैली है।

जिले को मिले दो जांबाज अधिकारी

मुख्यालय अंतर्गत मालखरोदा ब्लॉक के पीहरीद गांव में राहुल को विगत दिनों सकुशल बाहर निकाल लिया गया। राहुल रेस्क्यू के दौरान ओएसडी नूपुर राशि पन्ना सिर पर हेलमेट लगाए लगातार इस तरह मैदान में डटी रही जैसे वह कोई आईएएस न होकर किसी खदान की जुझारू कर्मचारी हो। किसी कार्यों में किसी को निर्देश देने की बजाए वह एक कर्मचारी और जिम्मेदारी के साथ बिना सोए अंत तक काम करती दिखी। वहीं ओएसडी पुलिस एम आर आहिरे को रेस्क्यू स्थल पर बहुत कम ही लोगों ने एक आईपीएस समझा होगा। सरल, सहज और ऊंचे पद पर होने के बाद भी उन्होंने किसी को अहसास नहीं होने दिया कि वे आईपीएस है। उनकी सहजता, सरलता ने सुरक्षा में लगे अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों व कर्मियों को भी कर्तव्य व दायित्व के लिए प्रेरित किया। जांजगीर-चाम्पा जिले से अलग होकर सक्ती अब नया जिला बन गया है। अब इस जिले के वे दोनों पहले कलेक्टर और एसपी है। शायद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ऐसे ऊर्जावान और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों की पहचान है। हमारी ओर से पूरी टीम को सलाम है आशा है कि नया जिला सक्ती विकास की राह में ना झुकेगा ना रुकेगा निरंतर आगे बढ़ेगा।

सक्ती को जिला बनाने दो दशक पूर्व जिला बनाओ संघर्ष समिति का हुआ था गठन

सक्ती को जिला बनाने की मांग विगत दो दशकों से निरंतर की जाती रही है यहां जिला बनाने को लेकर अधिवक्ता दिगंबर प्रसाद चौबे के नेतृत्व में जिला बनाओ संघर्ष समिति का गठन किया गया था, समिति में सक्ती के कई दिग्गज शामिल थे, मध्य प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह ने भी जिला बनाने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से निवेदन किया था , साथ ही जिला बनाओ संघर्ष समिति ने छत्तीसगढ़ के प्रथम कांग्रेस की सरकार में प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी को भी जिला बनाने के लिए मांग पत्र सौंपा था, उसके बाद भारतीय जनता पार्टी के रमन सरकार को भी जिला बनाने का मांग पत्र सौंपा गया ,डॉक्टर रमन सिंह के द्वारा वादा किया गया था की सक्ती को आप भाजपा के विधायक दीजिए सक्ती जिला जरूर बनेगा सक्ती वालों ने भाजपा विधायक दीया पर सक्ती उसके बाद भी जिला नहीं बन सका उसके बाद सन् 2018 में कांग्रेस की सरकार आने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और सक्ती के विधायक डॉ चरणदास महंत को जिले बनाने के लिए ज्ञापन दिया गया और सक्ती वासियों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल ने ने 15 अगस्त 2021 को सक्ती जिला बनाने की घोषणा की और अभी कुछ दिन पहले 9 सितंबर 2022 को नवगठित जिला का अपने कर कमलों से विधिवत उद्घाटन किया और सक्ती जिला अस्तित्व में आ गया ,भारत के मानचित्र पर आने से हम गौरवान्वित महसूस करते है हमारे लिए गौरव की बात है इस माटी को प्रणाम, सब मिलकर एक सार्थक प्रयास करें सब मिलकर सक्ती जिला को एक ऐतिहासिक पहचान दिलाएं यह तभी संभव हो पाएगा जब हम सब मिलकर सार्थक सकारात्मक प्रयास करेंगे ।