रासलीला जीव एवं परमात्मा का मिलन – श्री अतुल कृष्ण भारद्वाज

परमानंद ही है रास

सक्ती । कथा व्यास पूज्य श्री अतुल कृष्ण भारद्वाज जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दौरान षष्ट दिन सभी श्रद्धालुओं के समक्ष भगवान श्री कृष्ण लीला प्रसंगों को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया, जिसे सुनकर श्रद्धालुगण राधा-कृष्ण की भक्ति में डूब गए। पूज्य व्यास जी ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण की ओर से की गई रासलीला – “जीव एवं परमात्मा के मिलन का रास्ता दिखाती है” गोपी – यानी जीवात्मा, कृष्ण अर्थात ईश्वर परमात्मा ने रास रचाया। काम को पराजित करने की लीला साक्षात जीव एवं परमात्मा का मिलन है। हम परमात्मा को चाहते हैं, परंतु अपने चारों ओर अनेक प्रकार के आडंबर को फैलाए रखते हैं। यदि ईश्वर को जानना अथवा पाना है, तो सबसे पहले अपने आप को जानना पड़ेगा और अपने ऊपर पड़े हुए मोह के पर्दे को हटाना पड़ेगा। व्यास जी ने कहा कि कृष्ण रूपी ईश्वर और गोपी रूपी जीव के ऊपर पड़े अज्ञान व मोह के पर्दे को चीर-हरण रूपी लीला हटाते हैं। गोपी यानी जीव, कृष्ण यानि परमात्मा, वस्त्र यानी अविद्या। कोई लाल, हरे एवं पीले वस्त्रों को नहीं चुराया बल्कि जल में नग्न होकर स्नान करने से वरुण देवता का अपमान होता है, इसलिए वस्त्र को चुराया अर्थात चीर-हरण हुआ उस समय भगवान श्री कृष्ण की अवस्था 5 वर्ष की थी अर्थात 5 वर्ष के बालक में कोई कामवासना नहीं होती। भगवान ने कहा कि इसी बात को हमें समझना है, यदि तुम नहीं समझ सकोगे और ना देख सकोगे, मैं तुम सब के सर्वत्र व्याप्त हूं। आवश्यकता है अपने भीतर के चक्षुओं को खोलकर देखने की। रासलीला वास्तव में जीव और परमात्मा के मिलन की एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिस पर चलकर असीम शांति एवं आनंद का अनुभव प्राप्त होता है। कृष्ण कंस रूपी अभिमान को मारा, अभिमान रूपी कंस की दो पत्नी आस्ती अर्थात प्राप्ति माने होगा।
रुक्मणी साक्षात लक्ष्मी, कृष्ण अर्थात नारायण। भगवान ने रुकमणी का हरण करके उसके भाई रुकमी को ब्रम्ह होने का प्रमाण दिया। राजा भीस्मक ने भगवत दर्शन करके अपने कन्या रुकमणी का विवाह श्री कृष्ण से किया, अर्थात लक्ष्मी नारायण का पुनः मिलन हुआ।