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पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड कौन? 5 पॉइंट में समझिए आतंकी संगठन टीआरएफ की साजिश

सक्ती –  अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में यह सबसे भयानक आतंकी हमला है. पहलगाम के बैसरन घाटी में आतंकियों ने पर्यटकों को निशाना बनाया, जिसमें कम-से-कम 26 लोग मारे गए. लश्कर-ए-तैयबा के ही एक सहयोगी संगठन द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली है. सूत्रों के मुताबिक, सैफुल्लाह कसूरी इस साजिश का मास्टरमाइंड था, और आसिफ फौजी ने हमले को अंजाम दिया. 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया, जिससे कश्मीर को विशेष दर्जा मिलता था. इसके बाद आतंकी गतिविधियां और पत्थरबाज़ी की घटनाएं कम हुई थीं. टीआरएफ का जन्म अनुच्छेद 370 हटने के बाद ही हुआ. पाकिस्तान और उसके समर्थित आतंकी दशकों से कश्मीर में आतंक फैला रहे हैं. लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन और उनके सरगना पाकिस्तान में बैठे हैं. कश्मीर में आखिरी बड़ा हमला पुलवामा में फरवरी 2019 में हुआ था, जब सीआरपीएफ के काफिले पर हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे. भारत ने बालाकोट में एयरस्ट्राइक से इसका जवाब दिया था. 22 अप्रैल को पहलगाम हमले में 4-5 आतंकियों ने हिस्सा लिया, जिनमें कुछ पाकिस्तानी थे. खबर है कि ये आतंकी हमले से कुछ दिन पहले ही घाटी में घुसे थे. अब सैफुल्लाह कसूरी, टीआरएफ और आसिफ फौजी के बारे में 5 पॉइंट्स में जानते हैं. जानकारी अभी पक्की नहीं है, और कई स्रोतों से मिली है.
1 पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड?  सैफुल्लाह कसूरी, जिसे खालिद भी कहते हैं, लश्कर-ए-तैयबा का सीनियर कमांडर है. खबर है कि उसने पहलगाम हमले की साजिश रची. कसूरी, लश्कर के संस्थापक हाफिज़ सईद का करीबी है. सूत्रों के मुताबिक, इस हमले की योजना बहुत सोच-समझकर बनाई गई. आतंकी घाटी में छिपे थे, और सही मौके का इंतज़ार कर रहे थे. यह हमला तब हुआ, जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वांस भारत दौरे पर थे, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब में थे. क्या यह महज़ इत्तेफाक था, या सियासी साजिश?
2. कसूरी का पेशावर कनेक्शन  सैफुल्लाह कसूरी – लश्कर-ए-तैयबा के पेशावर मुख्यालय का मुखिया है. 8 अगस्त 2017 को उसने हाफिज़ सईद के संगठन जमात-उद-दावा की राजनीतिक शाखा मिल्ली मुस्लिम लीग (एमएमएल) के अध्यक्ष के तौर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. कसूरी जमात-उद-दावा के सेंट्रल पंजाब प्रांत के कोऑर्डिनेशन कमेटी में भी रहा है. अमेरिका ने अप्रैल 2016 में जमात-उद-दावा को लश्कर का दूसरा नाम बताते हुए प्रतिबंधित किया था. दिसंबर 2008 में संयुक्त राष्ट्र ने भी इसे लश्कर का हिस्सा मानकर पाबंदी लगा दी थी.
3. टीआरएफ: कश्मीर का नया आतंकी चेहरा – द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) अनुच्छेद 370 हटने के बाद 2019 में बना. अधिकारियों के मुताबिक, इसका नाम इसलिए चुना गया ताकि इससे धार्मिक रंग न दिखे, और कश्मीर की आतंकी लड़ाई को स्थानीय दिखाया जाए. ‘रेसिस्टेंस’ शब्द इसे वैश्विक अपील देता है. टीआरएफ ने कश्मीर के पत्रकारों को धमकियां दीं, जिसके बाद गृह मंत्रालय ने इसे यूएपीए के तहत आतंकी संगठन घोषित किया. टीआरएफ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए युवाओं को भर्ती करता है, आतंकियों की घुसपैठ में मदद करता है, और पाकिस्तान से हथियार व नशीले पदार्थों की तस्करी करता है.
2019 में टीआरएफ का नेतृत्व शेख सज्जाद गुल ने किया, जबकि बासित अहमद डार इसका ऑपरेशनल कमांडर था. टीआरएफ में हिज़बुल मुजाहिदीन और लश्कर जैसे संगठनों के आतंकी शामिल हैं. टीआरएफ ने कश्मीर में कई हमले किए, जैसे अक्टूबर 2024 में गांदरबल में एक डॉक्टर और छह गैर-स्थानीय मज़दूरों की हत्या. जम्मू-कश्मीर पुलिस के मुताबिक, 2022 में घाटी में मारे गए ज़्यादातर आतंकी टीआरएफ के थे. 
4 आसिफ फौजी: टीआरएफ का फील्ड कमांडर – पहलगाम हमले की ज़िम्मेदारी टीआरएफ ने कुछ ही घंटों में ले ली. बुधवार को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तीन हमलावरों के स्केच जारी किए, जिनके नाम हैं—आसिफ फौजी, सुलेमान शाह, और अबू तलहा. खबरों के मुताबिक, आसिफ फौजी इस हमले का लीडर था. कुछ का कहना है कि वो स्थानीय आतंकी है, तो कुछ का दावा है कि वो पाकिस्तानी सेना के साथ काम करता था, इसलिए उसे ‘फौजी’ कहा जाता है.
चश्मदीदों के अनुसार, दो आतंकी पश्तो में बात कर रहे थे, जो इनके पाकिस्तानी मूल का संकेत देता है, जबकि दो अन्य बिजबेहड़ा और त्राल के स्थानीय बाशिंदे थे. खुफिया सूत्रों ने हमलावरों के डिजिटल निशान मुज़फ्फराबाद और कराची के सुरक्षित ठिकानों तक ट्रेस किए, जो सीमा-पार आतंक के सबूत देते हैं.
5. हमले से पहले पाकिस्तान के संकेत- पहलगाम हमले से कुछ दिन पहले पाकिस्तान में दो बयानों ने सुर्खियां बटोरीं, जो इस नरसंहार से जोड़े जा सकते हैं. 16 अप्रैल को पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर ने दो-राष्ट्र सिद्धांत पर ज़ोर देते हुए हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच “गहरे अंतर” की बात की. भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इसे पाकिस्तानी आतंकी समूहों को एकजुट करने का संकेत माना. वहीं 18 अप्रैल को लश्कर कमांडर अबू मूसा ने पीओके के रावलकोट में एक रैली में कश्मीर में जिहाद और खूनखराबे का आह्वान किया. यह रैली भारतीय सेना द्वारा मारे गए दो लश्कर आतंकियों की याद में थी. भारतीय खुफिया एजेंसियों ने मूसा के वायरल वीडियो की पुष्टि की, जिसमें उसने अनुच्छेद 370 हटने का बदला लेने की बात कही. रैली को पाकिस्तानी सुरक्षा तंत्र का समर्थन था. पहलगाम हमले में 26 पर्यटकों की मौत के बाद टीआरएफ की ज़िम्मेदारी और लश्कर कमांडर की साजिश ने पाकिस्तान की भूमिका को उजागर किया. हालांकि एक स्थानीय आतंकी के नेतृत्व की बात सामने आई है, पूरी तस्वीर वक्त के साथ और साफ होगी।