डॉ भीमराव अंबेडकर के सपनों का भारत अभी भी कोसों दूर

डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती पर उनके योगदान का स्मरण
आलेख/अधिवक्ता चितरंजय पटेल – महामना डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती पर सर्व समाज उनको स्मरण कर उनके योगदान पर विमर्श करता है पर उसे निजी जीवन में कितना अंश यथार्थ रुप में आत्म सात करता है, अब इस पर भी आज चिंतन करने का वक्त है क्योंकि अंबेडकर के सपनों का भारत अभी भी कोसों दूर नजर आता है। चूंकि सामाजिक समानता के बिना सामाजिक समरसता की बात करना अपने आप में ही विरोधाभाषी बयान है जिसे आज राजनीति दल मंचों से बखूबी बघारते हैं इसलिए आंबेडकरवाद पर जातिगत भावनाओं से परे भारतीय संस्कृति_परंपरा और इतिहास के समग्र चिंतन के साथ स्वीकार नहीं करेंगे तो सच्चे अर्थों में न ही समझ पाएंगे और न ही स्वीकार कर पाएंगे। हमारा सर्वसमाज बाबा घासी दास के अध्यात्म_चिंतन और संदेश का बखूबी बखान तो करता है पर उसका कितना अनुसरण करते है यह भी यक्ष प्रश्न है क्योंकि संत घासीदास ने आजीवन सत्य और अहिंसा का उद्घोष कर इंसानियत की परिभाषा बताते हुए कहा कि “मनखे_ मनखे एक” याने हर मनुष्य एक समान है और उसे बराबर सम्मान हक से जीने का अधिकार है, तो वहीं एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय का चिंतन रहा है कि किसी भी जाति_धर्म और वर्ग का व्यक्ति हो उसे समान हक और इज्जत से जीने की स्वतंत्रता है। दीनदयाल ने इसी बात को लेकर सामाजिक समानता के लिए अंत्योदय की बात कहते हुए कहा कि अंतिम छोर में खड़े व्यक्ति के उत्थान से ही समाज का सर्वांगीण विकास संभव है, और यही बात बाबा साहब ने आजाद भारत में संविधान का निर्माण करते हुए व्यक्ति को “मनुष्य” कहते हुए अपने विचारधारा में व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और न्याय पर अधिक जोर दिया। उन्होंने कहा कि व्यक्ति शिक्षित बने, संगठित हो और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करे। उन्होंने यह भी कहा कि व्यक्ति को धर्म के लिए नहीं बल्कि धर्म को व्यक्ति के लिए बनाया गया है अर्थात जो मनुष्य_मनुष्य में भेद करे वह सच्चा धर्म नहीं हो सकता बल्कि संपूर्ण मानवता के बीच समानता और समरसता का भाव के साथ सबके उत्थान की चिंतन करे वही सत्य सनातन धर्म है क्योंकि वसुधैव कुटुंबकम् अर्थात संपूर्ण जगत मेरा परिवार है, यही भाव सबका साथ, सबका विश्वास और सबके विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है जहां संत घासीदास के सत्य_अहिंसा, पंडित दीनदयाल के एकात्म मानववाद_अंत्योदय औरअंबेडकर के समानता और सम्मान से जीने का हक की बात का भलीभांति समर्थन करता है। आज अंबेडकर जयंती पर सार्वभौमिकता से चिंतन की आवश्यकता है भारतीय इतिहास, परंपरा में समाज सुधार के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाले इन महामानवों ने सामाजिक समानता, समरसता, शांति से समग्र विकास के लिए शिक्षा पर जोर दिया है इसलिए सर्वप्रथम हम सब संकल्प लें कि हमारा भावी पीढ़ी की किसी भी रूप में शिक्षा से वंचित न रहे, तब शिक्षित समाज निश्चित रूप से वसुधैव कुटुंबकम् के ध्येय के साथ समाज के साथ राष्ट्र के सर्वांगीण विकास की कल्पना को साकार करेगा।
बाबा साहब की जयंती पर उन्हें सादर नमन.. विनम्र श्रद्धांजलि