सक्ती

भगवान हमेशा अपने भक्त के वशीभूत होते हैं   भक्ति में इतनी सक्ती होती है कि कोई भक्त भगवान को सातवें आसमान से भी नीचे उतार लता है – भागवताचार्य राजSद्र महाराज

सक्ती – भक्त प्रहलाद ने अपने नास्तिक और भगवान नारायण को अपना शत्रु मानने वाले पिता, हिरण्यक कश्यप से कहा, कहा कि मेरे भगवान नारायण इस खंबे में भी हैं   तब भगवान नारायण को अपने भक्त की मान्यता बनाए रखने के लिए खंभे से ही अलौकिक रूप धारण कर प्रकट होना पड़ा   श्री भगवान कहते हैं मेरे रहने का, निवास और पता तो मेरा भक्त ही बताता है  जिसकी जिस प्रकार की भावना रहती है वह भगवान को भी उसी मन से ही देखता हैं, यह उद्गार  सेमरिया पामगढ मे आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन व्यास पीठ से आचार्य राजेंद्र महाराज ने प्रकट किया आचार्य द्वारा कपिल देवहुति संवाद प्रसंग में, सत्संग की महिमा बताया गया कि, जिन मनुष्यों के जीवन में सत्संग होता है, उन्हें ही आनंद का अनुभव होता है l सुख तो जीवन के अनेक घटनाओं में, क्षण मात्र के लिए मिलता है, किंतु आनंद तो भगवान की भक्ति और सत्संग में लंबे समय के लिए मिलता है  भौतिकता मनुष्य जीवन का सुख है, तो वही आध्यात्मिकता हमारे जीवन का आनंद  और शांति है  गृहस्थ जीवन में  केवल पति-पत्नी का संग ही ना हो बल्कि नित्य प्रति सत्संग भी हो, तो गृहस्थ भी मंदिर बन जाता है l पति और पत्नी गृहस्थ जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए ही तो हैं, दोनों साथ-साथ चलकर  गृहस्थ रूपी गाड़ी में जहां 10 घोड़े जुते हैं, पांच हमारी ज्ञानेंद्रिय और पांच हमारी कर्मेंद्रियां, इनके रास को भगवान के हाथ में सौंप देने से  गृहस्थ रूपी गाड़ी व्यवस्थित और सीधी चलती है, अर्थात हमारे जीवन में भगवान की महत्ता ही सर्वोपरि है  आचार्य ने आगे बताया कि, मनुष्य को चाहिए कि वह अपने प्रत्येक कार्य के साथ, भगवान को जोड़कर ही रखें , तो कर्म ही पूजा बन जाती है l जीवन के केंद्र में भगवान को रखें और परिधि में दुनियादारी को रखना चाहिए, तो हमेशा भगवान का सहारा भक्त को मिलते रहता है  तीसरे दिन की कथा प्रसंग के साथ स्रोतों को  भक्त प्रहलाद और नरसिंहनाथ की दिव्या झांकी का दर्शन प्राप्त हुआ  प्रतिदिन आसपास के गांव के श्रद्धालुओं की भीड़ कथा श्रवण करने के लिए उमड़ रही है   सार्वजनिक भागवत कथा समिति द्वारा अधिक से अधिक संख्या में कथा श्रवण करने की अपील की गई है l