सडक़ों पर मवेशियों का डेरा, यातायात हो रहा बाधित, गौवंश हो रहे दुर्घटना का शिकार, आखिर कौन है जिम्मेदार?

सक्ती – शहर हो या गांव, सभी जगह गौ-वंश की दुर्दशा हो रही है। ऐसा कोई दिन नहीं बीतता जिस दिन गौ-वंश सडक़ दुर्घटना का शिकार न हो या सडक़ों पर बैठे इन मवेशियों के चलते राहगीरों परेशान न हों। सडक़ों पर बैठे मवेशियों के कारण लोग सडक़ दुर्घटनाओं का शिकार भी हो रहे हैं। इन सडक़ दुर्घटनाओ में लोग या तो घायल हो जाते हैं या उनकी भी मौत हो जाती है। गौ-वंश के सडक़ों पर आ जाने से सडक़ जाम के साथ-साथ दुर्घटनाओं में इजाफा होने लगा है। सक्ती जिले के हालात कुछ इसी तरह बदतर हो चले हैं क्योंकि दो वक्त के दाना-पानी के बदले दूध देने और मरने के बाद शरीर के चमड़े से कई लोगों का रोजगार चलाने वाली गोवंश सडक़ों पर मारी-मारी फिर रही है, क्योकि उनके रहने-खाने का इंतजाम इंसान ने छीन लिया। गाय सडक़ों पर आ गईं, बस यहीं से गोवंश सडक़ दुर्घटना की वजह और शिकार बनने लगी हैं।
सक्तीनगर में सैकड़ों की संख्या में ऐसे गोवंश हैं, जिनके न रहने का ठिकाना है, न खाने-पीने का इंतजाम है। शहर के हर वार्ड में कम से कम दर्जनों गोवंश हैं, जो खाने की तलाश में सडक़ों, गलियों में भटकती रहती हंै। हर सडक़ पर इसी वजह से जाम लगता है। इनके चलते शहर की ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा गई है। सडक़ के किनारे और सडक़ पर बैठी गायों को बचाने के प्रयास में सडक़ दुर्घटना हो रही है, जो रोजाना बढ़ती ही जा रही है। रात के समय सडक़ पर बैठे गौ-वंश बड़ी सडक़ दुर्घटनाओं की वजह बन रहे हैं। लोग हादसों का शिकार होकर जान गंवा रहे हैं। गायों को बचाने के चक्कर में दुर्घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। कोई इन्हें चोटिल कर भाग जाता है या तो खुद दुर्घटना का शिकार हो जाता है।
विगत दिनों बाराद्वार क्षेत्र में हुई ऐसी ही एक घटना में सडक़ पर बैठे एक गोवंश को एक तेज रफ्तार वाहन में ठोकर मार दी और ड्राइवर वाहन लेकर मौके से फरार हो गया। तड़पती हुई गोवंश का गौ सेवकों ने तत्काल मौकास्थल पर पहुंचकर चिकित्सकों की मदद से इलाज कराया, बाद में उसे सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दिया गया, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। बाराद्वार क्षेत्र में ही एक दूसरी घटना में एक गोवंश का शव रेलपांत पर क्षत विक्षत हालत में मिला था, जिसे उक्त स्थल से हटाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी और चौबीस घंटे के बाद गौ सेवकों की मदद से उसका कफन-दफन किया गया।
विलुप्तप्राय हो गया रोका-छेका अभियान
देखा जाए तो सडक़ों पर मवेशियों का डेरा एक गंभीर समस्या का रूप ले चुकी है, लेकिन राहत की बात अभी दूर की कौड़ी है, क्योंकि मवेशियों के संरक्षण और खेती-किसानी के दिनों में फसल को नुकसान न पहुंचे इसके लिए रोका-छेका अभियान शुरू किया गया था। सडक़ों पर विचरण करने वाले मवेशियों को गोठान में रखे जाने की व्यवस्था की गई, लेकिन अब पुन: सडक़ों से मवेशियों को हटाने की कार्यवाही जमीनी स्तर पर नजर नहीं आ रही है। नगर पालिका परिषद द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिसकी वजह से मवेशी सडक़ों पर स्वछंद विचरण करते नजर आ रहे हैं। इससे दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।
छिन रही लोगों की खुशियां
देश हो या प्रदेश या शहर, सडक़ दुर्घटना में सबसे ज्यादा मौतें हो रही है। सडक़ दुर्घटना की दस वजह मुख्य हैं,जिसमें ओवर स्पीड, ओवर टेक, मोबाइल का इस्तेमाल, ड्रंक एंड ड्राइव, रेड लाइट जंप, सेफ्टी फीचर्स का इस्तेमाल नहीं, सडक़ नियमों की अनदेखी, सडक़ पर जानवर आ जाना, इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, ड्राइवर का भ्रमित होना कारण हैं। जिनमें से एक बड़ी वजह सडक़ पर जानवरों का आ जाना भी है। जानवरों के सडक़ पर आने से भीषण हादसे होते हंै, ऐसी दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा बाइक सवार मौत का शिकार होते हैं। इसके अलावा ऐसे भी हादसे होते हैं, जिन्हें रोड एक्सीडेंट तो नहीं कहा जाता, लेकिन ये दुर्घटनाएं जानवरों की वजह से ही होती हैं। जिले में कई परिवारों के मुखिया या इकलौते चिराग को जानवरों के बीच में आने से हुई दुर्घटनाओं ने छीन लिया है।
बेेजुबानों का भी हो रहा दर्दनाक अंत
भूख-प्यास से बिलखते ये बेजुबान अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ बोल भी नहीं पाते, सडक़ पर आवारा घूम रही किसी भी गाय की आंखों, शरीर के जर्जर ढांचे को देखने से ही महसूस हो जाता है, कि इन आंखों से बह रहे आंसूओं की वजह क्या है, कितनी तकलीफ में गुजरता है इनका हर पर, हर दिन। एक दिन कैसे भी गुजर जाए, लेकिन अगले दिन भूख से या सडक़ दुर्घटना से बच पाएंगी या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है। घर या गौशाला में ठिकाना नहीं रहा, सडक़ों पर कुछ देर के लिए ठौर मिलता तो है, लेकिन सडक़ दुर्घटना में कब हमेशा के लिए बैठ जाएं या जान चली जाए, इसका बात का डर हर पल बना रहता है। गौ-वंश के हित की बात तो सभी करते हैं, लेकिन इनकी दुर्दशा देखकर भी अनदेखी कर रहे हैं, यही वजह है कि गौ-वंश तिल-तिल कर जीते और तड़प-तड़प कर मर रहे हैं।