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भगवान का अवतार करुणा वश होती है और जीवों का जन्म कर्म वश होता है – आचार्य देव कृष्ण महाराज

जांजगीर में मातृ समिति के द्वारा कराया जा रहा है भागवत सप्ताह यज्ञ का आयोजन

भगवान का अवतार करुणा वश होती है और जीवों का जन्म कर्म वश होता है - आचार्य देव कृष्ण महाराज kshititech


जांजगीर ‌। जाज्वल्य देव की पावन नगरी जांजगीर के चितर पारा में मातृ समिति के सहयोग से आयोजित सप्ताह यज्ञ का 26 जनवरी से भव्य कलश यात्रा व वैदिक मंत्रों से श्रीमद्भागवत सप्ताह की शुरुआत हुई। सप्ताह यज्ञ जो ज्ञान यज्ञ है जो आद्यात्म दीप भी होकर लोगों की अंतरात्मा को प्रकाशित करती है। जिसे प्रज्ज्वलित कोई एक करता है पर उसकी प्रकाश से सभी चर-अचर जगत के साथ ही साथ जहां तक भागवत चर्चा का प्रसार होता है सम्पूर्ण प्रकृति ही धन्य हो जाया करती है। श्रध्देय महाराज जी ने कहा कि भगवान का अवतार करुणा वश होती है और जीवों का जन्म कर्म वश होता है- “कर्मणा जायते जन्तु: कर्मणैव विलीयते । सुखं दु:खं भयं क्षेमं कर्मणैवाभिपद्यते॥”
कथा में व्यास आचार्य देवकृष्ण महाराज द्वारा भागवत महात्म्य का वर्णन किया गया जिसमें प्रमुख रूप से धुंधकारी प्रसंग जिसमे किस प्रकार धुंधकारी का कर्म बिगड़ जाने के कारण उसका अधोपतन हुआ और उसकी सद्गति गया श्राद्ध करने पर भी नहीं हो सकी ऐसे पापात्मा धुंधकारी को भागवत का आश्रय लेने से मुक्ति मिली। आचार्य परम् श्रद्धेय देव कृष्ण ने ध्रुव चरित्र का भी विस्तार से वर्णन कराया गया। अगर भगवान की भक्ति में में उमड़ जाए तो क्या बालक और क्या वृद्ध क्या जड़ और क्या चेतन क्या पशु और क्या मानव। पांच वर्ष के उस बालक ने तय कर लिया था कि मैं या तो अपनी लक्ष्य अर्थात उस परम को प्राप्त करूँगा या फिर अपना जीवन ही समाप्त कर दूंगा। फिर भगवान को सातवें आसमान से आना ही पड़ा। जीवन मे सुख दुख आनी जानी है। भागवत में भगवान की ही कथा ना होकर यह तो भक्तों की कथा से सराबोर है ऐसे ही भगवान के परम भक्त प्रह्लाद के चरित्र का श्रवण कराते हुए कहा की प्रभु ने भक्तों की रक्षा करने हेतु सदा तत्पर रहते हैं । आज भगवान अपने भक्त केकहने पर खंभे से प्रकट हुए और दुर्दान्त दैत्य हिरण्य कश्यप का वध किया।
“प्रबल प्रेम के पाले पड़ के,प्रभु का नियम बदलते देखा ।अपना मान भले टल जाए,भक्त का मान न टलते देखा ॥”
भगवान अपने भक्त की रक्षा करने हेतु स्वयम के बनाये नियम को भी बदल देते है। आज भगवान ने ऐसा रूप बनाया जो ना तो मनुष्य के जैसा दिखता और ना ही पशु के जैसा। भगवान ने बड़ा विचित्र रूप जिसे नरसिंह भी कहते है जो दिखने में सिंह के जैसे थे तथा धड़ के निचले भाग मनुष्य के जैसा था।
भगवान की समस्त लीलाएं मनुष्य को सद्मार्ग पर चलने को प्रेरित करती हैं। भगवान जो कभी मर्यादा पुरुषोत्तम तो कभी लीला पुरुषोत्तम के रूप में अवतरित होकर अपनी लीलाएं किये । जांजगीर चितर पारा में मातृ समिति द्वारा आयोजित सप्ताह यज्ञ के व्यासाचार्य युवा मनीषी देव कृष्ण जी ने कथा के चतुर्थ दिवस भगवान कृष्ण के प्रादुर्भाव के पावन प्रसंग का श्रवण श्रोताओं को कराया लोगों ने बड़े उत्साह पूर्वक विभिन्न प्रसगों के साथ श्रीराम प्राकट्य का हेतु समझा व आचार्य ने प्रभु श्रीराम के आदर्शों से स्वयं के जीवन को धन्य करने का आग्रह आचार्य जी द्वारा किया गया।आयोजन में प्रधान यजमान संतोष शारदा राठौर, धनंजय विनिता राठौर हैं।