सक्ती

विद्युत कर्मचारियों का सम्मान वक्त की मांग – अधिवक्ता चितरंजय पटेल

सक्ती- आज सोशल मीडिया ग्रुप में बिजली कर्मचारी के पुत्री की हृदय स्पर्शी अपील से ध्यान में आया…शायद इस बिटिया की कहानी सीमा पर जंग के लिए जाने वाले फौजी की कहानी से हूबहू मिलती है…आज जबकि पर्यावरण असंतुलन की वजह से प्राकृतिक हवा का उम्मीद हर व्यक्ति छोड़ चुका है और अत्याधुनिक यांत्रिक सुविधाओं का आदी हो चुका है जो लगभग विद्युत आपूर्ति पर पूर्णतः आधारित है ऐसी स्थिति विद्युत आपूर्ति में जरा सा रुकावट से हमारी जान निकल आती है… और हम अपना विवेक खोकर इसके लिए आपूर्ति में संलग्न टेक्निकल स्टाफ (अक्सर लाइन मेन) को अपने  मोबाइल पर ही भड़ास निकालने के साथ ही कई बार संपूर्ण मर्यादा को लांघ देते हैं जबकि मौका ए वारदात पर परिस्थितियों से करीबन हम अनभिज्ञ ही होते हैं। आज निश्चित रूप से हम इतने स्वार्थी और सुविधाभोगी हो गए हैं कि अक्सर विद्युत सप्लाई में बाधा के मूल कारण को ही नजर अंदाज कर जाते हैं, खासकर भीषण गर्मी हो या बरसते पानी हो इन्हीं दिनों में आपूर्ति में अक्सर रुकावट आती है… और यह भी सही है कि इसी समय में बिजली की हमें ज्यादा जरूरत होती है पर क्या यह उचित है कि केवल अपने सुविधा और स्वार्थ के नाम पर बिजली कर्मचारी के जीवन की परवाह ही न हो अगर ऐसी ही हमारी सोच नकारात्मक है तो फिर मान लें कि हमारे आपके भीतर की इंसानियत खतम की ओर है, क्योंकि बिजली कर्मचारियों के भी अपने परिवार हैं उनके मां-बाप, पत्नी-बच्चे हैं जिनके  लिए उनका जीवन भी हमारे तरह ही महत्वपूर्ण हैं। जैसा कि एक बेटी ने कहा है कि जब-जब आंधी तूफान आता है और मोबाइल बजता है उन्हें जंग के मैदान में जाने वाले सैनिक के बच्चे की तरह एक अज्ञात और भयानक मंजर अपने आप हमारे मानस पटल में उभरता है कि मेरे पापा सुरक्षित हैं या नहीं अर्थात सुरक्षित घर वापस आ पाएंगे या नहीं क्योंकि उसे प्राकृतिक आपदा और तकनीकी क्षति से ज्यादा वर्तमान में इंसानी आक्रोश और हमलों से खतरे का डर ज्यादा होने लगा है इसलिए समाज की भी जिम्मेदारी है कि हमारे जीवन रक्षक विद्युत कर्मचारियों के जीवन संरक्षण भी सुनिश्चित हो, ताकि वर्तमान बिगड़ते प्राकृतिक असंतुलन में हम कहते हैं कि वृक्ष है तो जल हैऔर जल है तो जीवन है तो उससे ज्यादा, बिजली है तो जीवन है उक्ति चरितार्थ हो रहा है क्योंकि हवा और पानी दोनों के लिए हम पूर्णतः आज बिजली पर आश्रित हो चले हैं। वस्तुतः हमने प्राकृतिक जल स्त्रोतों जलाशय, कुओं आदि को समाप्त कर उसमें घर बंगलों बना लिया है तो वहीं हवा के स्त्रोत पेड़- जंगलों को काटकर उद्योग धंधों से प्रेम कर लिया है फिर बिजली से ही तो हम सब जिंदा रहेंगे… इसलिए बिजली कर्मचारी के साथ सहृदयता के साथ पेश आएं और उनके परिवार को अपना मानते हुए सम्मान का व्यवहार दें तभी बिगड़े हुए पर्यावरण संतुलन को  सामाजिक संतुलन से हल करने का मार्ग सुनिश्चित हो।
*आज यह बात भी हमारे मन मस्तिष्क में उजागर होन चाहिए कि कोविड से निपटने में तकनीकी कर्मचारियों यथा_ विद्युत और रेल कर्मचारियों की भूमिका किसी भी कोरोना वॉरियर्स से कम नहीं है जबकि पुलिस, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग श्रेय लेते और सम्मान बटोरते रहे जबकि अगर हॉस्पिटल, घर या कोविड सेंटरों में विद्युत आपूर्ति नहीं होती तो पुलिस का डंडा या प्रशासन का कर्फ्यू लोगों को सड़क में उतर कर व्यवस्था बिगाड़ने से नहीं रोक पाता और फिर डॉक्टर किस संसाधन से इलाज कर पाते पर लॉक डाउन में सब बंद होने के बाद भी मालगाड़ियां पटरी पर दौड़ कर विद्युत संयंत्रों को कोयला आपूर्ति करती रहीं तो वहीं बिजली कर्मचारी विद्युत व्यवस्था सुलभ कराते रहे। याने समाज के इन महत्वपूर्ण अंगों ने कोविड काल में भी अपने परिवार से बाहर निकल कर जनजीवन को पोसा-पाला है जबकि दुर्लभ ही ऐसा समारोह हुआ होगा जहां इन लोगों का विशिष्ट रूप से अभिनंदन किया गया हो। आइए, हम वक्त रहते समाज के ही इस वर्ग के साथ अतिरेक में सीमा लांघने बजाय इनके योगदान की सराहना के साथ समाज के मुख्य धारा में इनकी सकारात्मक भूमिका सुनिश्चित करें । वरना वक्त पलटते देर नहीं लगती फिर खासकर हम अपनी बिना बिजली नहीं जी पाने की मजबूरी हम सबको पंगु बना रही है, तब वसुधैव कुटुंबकम की परंपरा को ही हम आत्मसात कर लें और सबका साथ-सबका विश्वास के भाव से ही सबका विकास संभव होगा।