नगर में भव्य कलश यात्रा के साथ मित्तल परिवार की भागवत महापुराण का आचार्य राजेंद्र जी महाराज के सानिध्य में हुआ शुभारंभ





सक्ती । सक्ती नगर में भव्य कलश यात्रा के साथ विशाल श्रीमद् भागवत महापुराण कथा का शुभारंभ किया गया । कलश यात्रा में आयोजक परिवार सहित नगर के सैकड़ो लोगों ने भाग लिया , महिलाओं द्वारा कलश धारण कर राधे-राधे की जयकारा के साथ भजन संकीर्तन सहित नगर के मुख्य मार्ग से होते हुए मारवाड़ी पंचायत श्री राम मंदिर से महापुराण का पूजा अर्चना करते हुए गाजे बाजे के साथ महामाया देवी की पूजा अर्चना सहित गायत्री मंदिर में वरुण पूजन कर कथा स्थल पहुंचे ।
यज्ञ के प्रथम दिन विद्वान आचार्य के द्वारा वेदियों की प्रतिष्ठा एवं पितरों का आवाहन सहित पूजा प्रतिष्ठा संपन्न कराई गई ।
मित्तल परिवार द्वारा अपने पूर्वजों के सद्गति एवं मोक्षार्थ आयोजित गया भागवत के प्रथम दिन व्यास पीठ से छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध भागवत आचार्य राजेंद्र जी महाराज द्वारा भागवत महात्म्य का सरस वर्णन किया गया, उन्होंने बताया कि श्रीमद् भागवत एक शाश्वत संहिता है जिसमें सभी जीवो का कल्याण है । यह साक्षात भगवान श्री कृष्ण चंद्र जी का वांग्मय स्वरूप है , यह संपूर्ण तपस्याओं तथा संपूर्ण ज्ञान का फल है । इस महापुराण की कथा के माध्यम से हम भगवान की छवि अपने अंदर उतारते है ।सात दिनों की कथा से सोया हुआ वैराग्य जगाता है । इसी सप्ताह यज्ञ की अद्भुत महिमा से भक्ति देवी के दोनों बेटों ज्ञान और वैराग्य की जरावस्था दूर होकर किशोर अवस्था की प्राप्ति हुई थी । भयानक प्रेत योनि में पड़ा हुआ धुंधकारी को साक्षात मुक्ति गति मिली थी ।
श्रीमद् भागवत वह श्रेष्ठ सत्कर्म है जो किसी व्यक्ति के पुरुषार्थ के कारण नहीं बल्कि उसके भाग्योदय और राधे रानी की अति कृपा से प्राप्त होती है । यह देव दुर्लभ भी है किंतु मनुष्यों को भाग्य के कारण सुलभ है ।जब श्री शुकदेव जी महाराज राजा परीक्षित को कथा श्रवण करने लगे तब देवताओं ने अमृत का कलश हाथ में लेकर निवेदन किया था कि हमें इस सुधा अमृत के बदले कथा अमृत प्रदान करें , क्योंकि राजा परीक्षित को यह अमृत अकाल मृत्यु से बचा सकता है ।शुकदेव जी महाराज ने देवताओं को भागवत कथा अमृत का अधिकारी नहीं बताते हुए कहा कि आपका शुधामृत श्री कृष्ण कथा अमृत के सामने तुक्ष है अर्थात भागवत कथा अमृत एक अनमोल मणि है, और अमृत जिसे पीकर अजर अमर हो जाते हैं यह केवल कांच का टुकड़ा मात्र है । आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने आगे बताया की कलि युग के सभी प्रकार के पापों और तापो को नाश करने का श्रेष्ठ उपाय श्रीमद् भागवत ही मनुष्यों के लिए एक श्रेष्ठ वैद्य , औषधि और उपचार तीनों ही है । यह मृत्यु को भी मंगलमय बनाकर परलोक सुधारती है । इस धरा पर प्रथम बार श्रीमद् भागवत की कथा भगवान श्री कृष्ण के स्वधाम गमन करने के उपरांत 30 वे वर्ष में हुई , जिस स्थान को आज शुकताल के नाम से हम जानते हैं । इस महापुराण में 12 स्कंध , 335 अध्याय, और 18000 श्लोक हैं जिनका श्रवण संकीर्ण और गायन परम कल्याणकारी है। श्रीमद् भागवत वेद रूपी कल्पवृक्ष पर लगा हुआ रस से भरा हुआ फल है जिसका ना तो कोई छिलका और ना ही कोई गुठली है अर्थात त्यागने के लिए कुछ भी नहीं ,मन से पीने का है ।
प्रथम दिवस सैकड़ो लोगों ने कथा रसपान का आनंद लिया , आचार्य देव कृष्ण जी महाराज एवं संगीत आचार्य संतोष जी द्वारा प्रस्तुत विशेष भजन का आनंद श्रोताओं को प्राप्त हुआ ।
भागवत कथा के आयोजन मित्तल परिवार द्वारा प्रतिदिन अधिक से अधिक संख्या में कथा श्रवण एवं सत्संग लाभ प्राप्त करने हेतु अपील की गई है ।