जांजगीर चांपासक्ती

संसार में प्रत्येक प्राणियों का जन्म अपने-अपने कर्मों के अनुसार होता है , किंतु भगवान का अवतार करुणावश ही होता है – भागवताचार्य राजेंद्र जी महाराज

संसार में प्रत्येक प्राणियों का जन्म अपने-अपने कर्मों के अनुसार होता है , किंतु भगवान का अवतार करुणावश ही होता है - भागवताचार्य राजेंद्र जी महाराज kshititech

जांजगीर ‌। नगर के तलवा पारा स्थित राठौर भवन में , सांगितमय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन, किया जा रहा है l बड़ी संख्या में श्रद्धालु एवं कथा श्रोता, प्रतिदिन भागवत ज्ञान यज्ञ मैं सत्संग एवं संकीर्तन के साथ, कथा श्रवण का लाभ प्राप्त कर रहे हैं । श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन व्यास पीठ से कथा व्यास आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने श्रोताओं को बताया कि, संसार में प्रत्येक प्राणियों का जन्म अपने-अपने कर्मों के अनुसार होता है , किंतु भगवान का अवतार करुणावश ही होता है ।
अठइसवे द्वापर में भगवान श्री नारायण का अवतार, जगद्गुरु श्री कृष्ण के रूप में हुआ, जिनकी संपूर्ण कथाएं और लीलाएं मधुर्यता से परिपूर्ण है, वही भागवत की कथाओं में, पौराणिक संस्कृति है, तो कहीं वर्तमान भारत का शोध है और हमारे भविष्य की योजनाएं भी हैं ।
श्री कृष्ण ने अपनी लीलाओं में मनुष्य जीवन के लिए अद्भुत प्रेरणा प्रदान किया है , जल, फल और थल अर्थात भूमि को उन्होंने मुक्त करने का संकल्प लिया था , कालिदाह से कालियानाग का मर्दन कर उसे रमनक द्वीप भेज कर यमुना जल को प्रदूषण से मुक्त किया । वहीं दूसरी ओर ताल वन से धेनुकासूर दानव का वध, बलराम जी के हाथों करवा कर ताल वन काफल ब्रज वासियों को सोपा , भौमासूर को युद्ध में परास्त कर धरती को मुक्त किया ‌
श्री कृष्ण ने गोवर्धन लीला करते हुए अद्भुत उपदेश दिया कि, मनुष्य जीवन में दुख सुख क्लेश, छेम, और कलह उनके अपने कर्मों के कारण ही होता है । श्री कृष्ण ने ब्रज में होने वाली इंद्रयाग पर प्रतिबंध लगाया और बृजवासियों को बताया कि धरती पर वर्षा इंद्र के कारण नहीं होती । धरती में वर्षा तो धरती की हरियाली अर्थात वन पर्वतों और वृक्षों तथा लताओं के कारण होती है, इसलिए संपूर्ण मनुष्यों को हमेशा प्रकृति की रक्षा करती ही रहनी चाहिए l प्रकृति प्रथम कृति का हमारा लक्ष्य होना अति महत्वपूर्ण है । धरती के बढ़ते हुए तापमान को रोकने के लिए प्रत्येक मनुष्य को अपने जन्मदिन अथवा किसी उत्सव पर अपने हाथों से वृक्षारोपण अवश्य ही करना चाहिए, प्रकृति को बचाए रखने में यह हमारा महत्वपूर्ण योगदान होगा । आचार्य ने यह भी बताया कि भगवान ने उखल बंधन , चीर हरण , और महाराज लीला करते हुए ब्रज वासियों को आनंद दिया । भगवान का यही गुण होता है , कि वे स्वयं उखल से बंधे रहने के बाद भी नारद जी के श्राप में पड़े हुए कुबेर के दोनों पुत्रों को श्राप के बंधन से मुक्त किया था । चीर हरण लीलकर गोपियों को ज्ञान प्रदान किया , कि गोपियाँ यमुना में निर्वस्त्र स्नान कर , जल देवता का अपमान कर रही है , व्रत का नियम पालन नहीं करने पर उसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता । उन्होंने बताया कि स्त्रियां अपना आंचल संभाल कर चलें और पुरुष अपना आचरण संभाले ।
श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध पूर्वार्ध में अध्याय क्रमांक 29 से 33 तक पांच अध्यायों में आचार्य ने महाराज लीला का सरस वर्णन करते हुए बताया कि यही रास पंच अधयाई है । जहां श्री कृष्ण ने योग माया का आश्रय लेकर सभी गोपियों को दिव्य आनंद प्रदान किया, किंतु इन्हें अहंकार होने पर गोपियों का परित्याग भी किया ‌।
संसार की किसी भक्त और भगवान के बीच में अहंकार ही एक दीवार होती है , जिसके कारण भगवान नहीं दिखते।
कथा श्रवण कलाभ प्रतिदिन श्रोताओं को प्राप्त हो रहा है  श्रीमद् भागवत कथा के आयोजक श्रीमती सीमा विनीत राठौर, श्रीमती राजेश्वरी सुमित राठौर द्वारा कथा श्रवण करने हेतु आने हेतु आग्रह किया गया है ‌।