सक्ती

दुबलधनिया परिवार की भागवत कथा में व्यास आचार्य ने गृहस्थों से भगवान शिव की तरह जीने का किया आग्रह

खुले मंच से आचार्य ने कहा सनातन है और हमेशा रहेगा और उसके कई उदाहरण भी समझाएं

कृष्ण जन्म पर व्यास आचार्य ने गाई मधुर बधाई गीत …नंदलाल प्रगट भयो आज, बृज में लडुआ बंटत है…

वसुधैव कुटुंबकम् का उदार भाव ही सनातन धर्म है तो वहीं संप्रदाय हमें तंग दिल बनाता है… आचार्य अतुल कृष्ण भारद्वाज

दुबलधनिया परिवार की भागवत कथा में व्यास आचार्य ने गृहस्थों से भगवान शिव की तरह जीने का किया आग्रह kshititech
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सक्ती ‌। संप्रदाय एक किताब,एक पैगंबर, एक प्रार्थना, एक पूजा पद्धति से प्रभावित कर इंसान को तंग दिल बनाता है तो वहीं ईश्वर को अलग अलग रूपों में स्मरण करना, पूजन और दर्शन करना ही सनातन धर्म है, यह बात कथा व्यास पूज्यनीय अतुल कृष्ण भारद्वाज ने आज संप्रदायों की संकीर्णता और सनातन धर्म की उदारता के बीच लंबी रेखा खींचते हुए कहा कि जहां भारतीय दर्शन वसुधैव कुटुंबकम् के भाव को आत्मसात करता है तब हर भारतीय को सांप्रदायिक भाव से परे सनातन धर्म में अपनी आस्था सुनिश्चित करना चाहिए तभी हम पुनः विश्व गुरु कहलाएंगे।
आचार्य अतुल कृष्ण ने आज कथा के चतुर्थ दिवस पर ज्ञान के महिमा की चर्चा करते हुए बताया कि मनुष्य को गृहस्थ जीवन में भगवान शिव के स्वरूप को आत्मसात करना चाहिए क्योंकि भोले नाथ के सर पर सर्प विराजमान है अर्थात मनुष्य के कालरूपी नाग विराजित हो उसके आयु को प्रतिदिन कम कर रहा है तो वहीं शिव शेर की खाल धारण कर संदेश देते हैं कि हमें संयमित जीवन जीना चाहिए क्योंकि शेर अपने जीवन में एक नारी व्रतधारी है। भगवान शिव बारात में नंदी पर विराजमान होकर बताते हैं कि नंदी धर्म का प्रतीक है तो वहीं घोड़ा काम का प्रतीक है तो वहीं भस्मांग रमाय शिव जताते हैं कि हमारा शरीर चिता में जाकर भस्म ही हो जाना है इसलिए गृहस्थ में रहकर एक पत्नी अथवा पतिव्रत धारी रहें और निर्मल मन से ईश्वर भक्ति में सतत लीन रहें, क्योंकि प्रभु युक्ति है… निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र नहीं भावा अर्थात जब जब भी प्रभु को निष्कपट भाव से स्मरण किया गया तो वे त्रेता में श्री राम के रूप में कौशल्या, द्वापर में श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के घर अवतार लेकर अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना किया अर्थात छल व स्वार्थ रहित प्रेम से आज भी हम ईश्वर को पुकारें तो वह भी किसी न किसी रूप में प्रगट होकर हमारी सहायता कर जाते हैं पर अज्ञानरूपी अंधकार के कारण प्रत्यक्ष दर्शन अथवा महसूस नहीं कर पाते, चूंकि आज अज्ञानता का यह अंधकार दूर करने की शक्ति सत्संग की भक्ति में है जो श्रीमद भागवत के भक्तिमय कथा के रसपान से सहज और सरल हासिल होती है इसलिए इस कलि काल में हम सभी परिजनों सहित अमृतमय भागवत कथा रसपान कर जीवन को मंगलमय बनाएं।