वृक्षारोपण का कार्य महान , एक वृक्ष 10 पुत्र समान – आचार्य राजेंद्र महाराज

सक्ती । जब तक धरती में हरियाली अर्थात लताएँ ,पेड़ पौधे , जंगल वन पर्वत और वृक्ष आदि रहेंगे तब तक ही इस धरती पर समस्त प्राणियों के साथ मनुष्य और उनकी संतान भी जीवित रह सकते हैं । यह धरती में रहने वाले प्रत्येक मनुष्य को गंभीरता से विचार करना ही होगा , क्योंकि आज संपूर्ण विश्व के सामने ग्लोबल वार्मिंग जैसा एक बड़ा संकट दिखाई दे रहा है ।
इस भयानक संकट से बचने का सिर्फ एक ही उपाय है ,कि धरती के बढ़ते हुए तापमान को हमें नियंत्रित करना होगा , और इसके लिए महत्वपूर्ण कदम धरती में हरियाली बढ़ाना ही है । आज बढ़ते हुए भौतिक संसाधनों का लाभ लेने के लिए हम प्रगति के नाम पर बड़ी लंबी और चौड़ी सड़कों का तथा इमारतों का निर्माण करने के साथ ही बड़े-बड़े नगर महानगर भी बसा रहे हैं , किंतु इसके पीछे हजारों वृक्षों का बलिदान और वन पर्वतों की कटाई भी आंख मूंद कर की जा रही है ।
हम देखें तो यह एक तरफ विकास है किंतु दूसरी और विनाश भी है । आज प्रत्येक हाथ में वृक्षों को काटने के लिए औजार दिखाई देते हैं , परंतु यह भी ध्यान रखना होगा की वृक्ष कितने लोग लगा रहे हैं ।
भगवान श्री कृष्ण ने 28 में द्वापर युग में ब्रज वासियों को यह अद्भुत प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा है कि धरती पर वर्षा वन पर्वतों और हरियाली के कारण होती है ,किसी इंद्रा नाम के देवता के कारण नहीं होती । इसलिए सभी ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा अवश्य ही करें अर्थात भगवान श्रीकृष्ण ने प्रकृति की पूजा करने को कहा है । दूध और दुर्गा सप्तशती के कवच का श्लोक इस बात का संकेत करता है की मनुष्य की भावी पीढ़ी और संतान तब तक धरती में जीवन जी सकते हैं जब तक की धरती में हरियाली बनी रहेगी ।
हम प्रकृति का संरक्षण और धरती में हरियाली बढ़ाने हेतु अपना योगदान कैसे दे सकते है , इस पर अगर विचार किया जाए तो हम अपने हाथों से बिना किसी सरकारी योजना के अथवा अनुदान बिना ही स्वयं की प्रेरणा से वृक्षारोपण करते हुए धरती को हरी-भरी बना सकते हैं । आजकल समाज में जन्मदिन और विवाह के वर्षगांठ मनाने का एक फैशन भी चल पड़ा है , ऐसे आयोजनों में खर्च भी बहुत किए जा रहे हैं ।
इन आयोजनों में हम अपना जन्मदिन और विवाह के वर्षगांठ जब मनाते हैं , तब क्या हम स्वयं और अपने परिवार के लोगों के हाथों से वृक्षारोपण नहीं कर सकते ? क्या इन्हें हम उपहार में कोई सुंदर सा महत्वपूर्ण पौधा नहीं दे सकते ? यदि ऐसा हमने किया तो निश्चित ही पर्यावरण की सुरक्षा में हमारी ओर से एक महत्वपूर्ण योगदान होगा ।
हमें अपने ही घर आंगन की हरियाली पर भी ध्यान देने की नितांत आवश्यकता है , क्योंकि हमारे अपने घर परिवार के लिए शुद्ध हवा की जरूरत होती है । उद्योग धंधे और व्यवसाय के बढ़ते क्रम पर अगर दृष्टि डाली जाए तो ऐसा भी दिखता है कि इन कल कारखानों से प्रतिदिन जहर उगलते दिखते हैं , जो शुद्ध हवा को जहरीला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं , इसके साथ ही वायुमंडल में ओजोन की परत भी नष्ट होती जा रही है , वहीं दूसरी ओर धरती का तापमान भी बढ़ते जा रहा है , आज बिना एसी और कूलर के रहना मुश्किल हो रहा है । शासकीय योजनाओं के द्वारा किए जा रहे वृक्षारोपण केवल औपचारिक कार्यवाही ही दिखती है ।
पर्यावरण के रखरखाव एवं धरती की हरियाली को बढ़ाने का कार्य आप हम सभी का नैतिक दायित्व और जिम्मेदारी भी है यह केवल सरकार के ही और उसे रखना उचित नहीं होगा , सरकारें तो आती रहती हैं और जाती रहती हैं । अपने भावी वंश और जनजीवन की चिंता हम सबको मिलकर करना ही होगा । हमें यह भी संकल्प लेना होगा कि हम किसी भी आयोजन में एक पौधा उपहार में अवश्य ही दें और इस आग्रह के साथ कि उसे रोपण कर हमेशा उसकी देखभाल भी करें । हमारी पौराणिक परंपरा और सनातन की दृष्टि से अनेक वृक्ष पूजनीय होते हैं , वट ,पीपल ,नीम ,बेल ,समी , कल्पवृक्ष , आदि में तो हमारी बड़ी आस्था और मान्यता भी है । वही तुलसी मैया अर्थात वृंदावन के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व से भी हम अनजान नहीं हैं । पेड़ , पानी और शुद्ध हवा यह हमारे जीवन की अनमोल दवा है । जो वृक्ष हमारे पूर्वजों ने लगाया उसे बेटा काटने को तो तैयार है परंतु अपने हाथों से वृक्षारोपण करने को तैयार नहीं है और यही बड़ी चिंता का विषय दिखाई दे रहा है ।
वृक्षारोपण का कार्य महान , एक वृक्ष 10 पुत्र समान , ऐसे प्रेरणास्पद पंक्तियों को चरितार्थ करने की आवश्यकता है क्यों ना हम जनमानस में तथा आज के युवा पीढ़ी में ऐसे विचारों का संचार करें जिससे आप हम सब मिलकर पर्यावरण की रक्षा कर सके और भविष्य भी सुरक्षित हो ।