सक्ती

आपातकाल बनाम मीसा और मीसाबंदी …

काला दिवस 25 जून पर विशेष लेख

आजाद भारत का सबसे काला इतिहास इमरजेंसी

सक्ती ‌। मीसा अर्थात आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (Maintenance of Internal Security Act (MISA)) सन 1971 में भारतीय संसद द्वारा पारित एक विवादास्पद कानून था। जिसके तहत कानून व्यवस्था बनाये रखने वाली संस्थाओं को बहुत अधिक अधिकार प्रदान किए गये थे फलस्वरुप आपातकाल के दौरान (1975-1977) इस कानून की आड़ में कई राजनीतिक बन्दियों पर अत्यधिक अत्याचार हुए जिसे अन्ततः 1977 में इंदिरा गांधी की पराजय के बाद सत्तासीन जनता पार्टी की सरकार द्वारा इसे समाप्त हो कर दिया गया।
आपातकालीन संघर्ष पर दृष्टिपात करें तो तत्कालीन सत्तासीन कांग्रेस सरकार की मुखिया प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जून 1975 में आपातकाल घोषित कर राजनीतिक प्रतिद्वंदियों पर जुल्म ढाए जो भारतीय लोकतंत्र काला अध्याय पुकारा जाता है जो शायद कांग्रेस की सबसे बड़ी भूल थी जिसका कलंक आज भी कांग्रेस के माथे पर है और उसके दंश से आज भी कांग्रेस पीड़ित है ।
चूंकि मीसा जैसे काले कानून के आड़ में तमाम विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर लाल कृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली, लालू यादव, नीतीश कुमार, सुशील मोदी, जॉर्ज फर्नांडिस, रविशंकर प्रसाद तक शामिल रहे तथा मीसा कानून का इस्तेमाल आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के लिए किया गया और मीसा यानी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम के जरिए इंदिरा गांधी की निरंकुश सरकार ने अपने करीब एक लाख राजनीतिक विरोधियों को जेल में डालकर विरोध को कुचलने का काम किया और आपातकाल के वक्त जेलों में मीसाबंदियों की बाढ़ सी आ गई थी। आपातकाल के नाम पर नागरिक अधिकार पहले ही खत्म किए जा चुके थे और फिर मीसा कानून के जरिए सुरक्षा के नाम पर लोगों को प्रताड़ित कर उनकी संपत्ति छीनी गई तथा कानून में बदलाव करने से न्यायपालिका में भी बंदियों की कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई फलस्वरुप अधिकांश बंदी पूरे 21महीने के आपातकाल के दौरान जेल में ही कैद रहे। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू की बड़ी मीसा भारती का नाम ही आपातकाल की देन है पर यह भारती राजनीति का दुःसंयोग कहिए कि अब वही लालू आज कांग्रेस से गलबहियां कर रहे हैं। आपातकाल के बारे में मीसाबंदी रहे स्वर्गीय अरुण जेटली ने अपने संस्मरण में लिखा था कि 26 जून 1975 की सुबह एकमात्र विरोध प्रदर्शन का गौरव मिला और मैं आपातकाल के खिलाफ पहला सत्याग्रही बन गया तब मुझे यह महसूस नहीं था कि मैं 22 साल की उम्र में उन घटनाओं में शामिल हुआ, जो इतिहास का हिस्सा बनने जा रही थीं और इस घटना ने मेरे जीवन का भविष्य बदल दिया। उस दिन स्व इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी मीसा बंदियों की लिस्ट बना रहे थे और शाम तक हमें तिहाड़ जेल में मीसा बंदी के तौर पर बंद कर दिया गया था। इस सूची में सबसे पहला नाम जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई का था जिन्हें सुबह होते ही को मीसा के तहत जेल में डाल दिया गया। तब से विरोधियों के खिलाफ अगले 21 महीने दमन की दास्तां जारी रही जहां विपक्ष के मीसा बंदियों ने जेलों में यातना की इन पलों में टूटने के बजाय इंदिरा सरकार को सत्ता से बेदखल करने की व्यूह रचना तैयार किया और इन्हीं कैदियों में जयप्रकाश नारायण से चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी,जॉर्ज फर्नांडिस, लालू यादव, शरद यादव जैसे नेताओं के स्वस्फूर्त आंदोलन ने इंदिरा सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया और मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ और 1977 में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी तथा नई सरकार के गठन के साथ ही दमनकारी कानून मीसा को (1979) में समाप्त कर दिया गया।
विदित हो कि मीसा बंदियों को आपातकाल के दौरान भी गैर कांग्रेसी सरकारों ने अपने राज्यों के मीसा बंदियों को पेंशन देने का काम किया तो वहीं छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने मीसा में बंद कैदियों को15 हजार रुपये मासिक पेंशन देना शुरू किया तब राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार ने भी 800 मीसा बंदियों को 12 हजार रुपये मासिक पेंशन देने का फैसला किया। भारतीय जनता पार्टी आज भी देशभर में आपात काल की बरसी पर काला दिवस मनाकर मीसा बंदियों को सम्मानित कर रही है। इस अवसर पर उच्च न्यायालय अधिवक्ता चितरंजय पटेल ने कहा कि भारतीय राजनीति का दुखद अध्याय है कि आपात काल के नाम पर कांग्रेस विरोध की राजनीति कर सत्ता हासिल करने वाले अवसरवादी नेताओं का आज कांग्रेसी नेताओं के साथ गलबहियां मीसाबंदियों के साथ ही आपातकाल की त्रासदी झेल चुके जनता का अपमान ही है।